दोस्तों अगर आप भी शायरी का शौक रखते है, तो आज का पोस्ट आप सभी के लिए ही बनाया गया है। जिसमे 150 से भी ज्यादा Allama Iqbal Shayari बताया गया है। इतनी ज्यादा आपको कही भी नहीं मिलेगा।
अल्लामा इकबाल जिनको मुहम्मद इकबाल के नाम से भी जाना था, ये 20वी सदी के सबसे अच्छे शायर रह चुके है, जिनकी शायरी के बदौलत आज भी इनकी खूब चर्चा की जाती है, अल्लामा इकबाल का जन्म 9 नवम्बर 1877 को भारत मे हुआ था, तब भारत क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा था।
इन्होंने शायरी के साथ साथ अपनी महानतम कविताये भी लिखी है, जिनको पढ़कर लगता है, आज भी उनके जैसे को भी नहीं लिख सकता, अक्सर उन्होंने कुछ मुख्य किरदार या विद्वान बनने वालों के ऊपर लिखा है, जैसे राजनीति, अर्थशास्त्र, इतिहास, दर्शन और धर्म और इन पर ही उनका ध्यान केंद्रित रहा है।
विभाजन के बाद वो पाकिस्तान मे ही रहे जहां उनको राष्ट्रीय कवि के नाम से भी जाना जाता है, उन्हें “हकीम-उल-उम्मत” “उम्मा के ऋषि” और “मुफक्किर-ए-पाकिस्तान” पाकिस्तान के विचारक के रूप मे भी जाना जाता है।
ये अपनी कविताओ को लिखने के लिए उर्दू, हिन्दी, और पारसी तीन भाषाओ का उपयोग करते थे, वैसे तो यह अंग्रेजी मे भी काफी अच्छे थे, किंग जॉर्ज ने 1922 मे ‘नाइट बैचलर’ का सम्मान दिया, चलिए जानते है, अल्लामा इकबाल की कुछ मशहूर शायरी को।
अल्लामा इक़बाल कौन थे
डॉक्टर अल्लामा इकबाल का जन्म सन् 1877 में सियालकोट, पंजाब जो विभाजन के बाद पाकिस्तान मे चले गए, वह उर्दू, फारसी और हिन्दी के महान कवि और शायर रह चुके है, उनकी पढ़ाई मुग़ल कालीन के अनुसार हुई थी, बाद मे उन्होंने उसी वक्त की सभ्यता से कठिन अध्ययन किया।
उनकी सबसे प्रसिद्ध कविताओं मे बंग-ए-दरा, बाल-ए-जिब्रील और अर्मग़ान-ए-हिजाज़ शामिल है, यह सभी कविताओ मे इन्होंने उस टाइम की सामाजिक, राजनीतिक और पूरी आर्थिक स्तिथि की व्याख्या की है, वैसे तो वह सफल वकील भी रह चुके है, जिन्हे ‘शायर-ए-मशरिक’ खिताब मिल है।
1938 में उनका निधन हो गया उनकी याद में पाकिस्तान में ‘इक़बाल दिवस’ मनाया जाता है, भारत और पाकिस्तान दोनों में उनकी शायरी को सम्मान के साथ याद किया जाता है। वे एक सच्चे रचनाकार और कवि के रूप में जाने जाते है।
Allama Iqbal Shayari in Hindi
दोस्तों अब चलिए यहाँ पर 150+ से भी ज्यादा Allama Iqbal Shayari आप सभी को बताने और सिखाने जा रहा हूँ। कृपया करके आराम से पढ़े।
दुनिया की “महफ़िलों” से उकता गया हूँ या रब,
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब_दिल ही बुझ गया हो।
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पर रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है, चमन में दीदावर पैदा।
फूलों की “पत्तियों” से कट सकता है ‘हीरे’ का जिगर
मर्दे नादान पर कलाम-ऐ-नरम-ऐ-नाज़ुक बेअसर
बे-ख़तर_कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़
अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी
औकात में रखना था जिसे
गलती से दिल में रखा था उसे
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है
दिल की बस्ती अजीब बस्ती है,
लूटने वाले को तरसती है
बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा
तिरे इश्क़ की ”इंतिहा” चाहता हूँ
मिरी ”सादगी” देख क्या चाहता हूँ
ये जन्नत “मुबारक” रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब,
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
तेरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी
मुझे इश्क के पर लगा कर उड़ा
मेरी खाक जुगनू बना के उड़ा
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतज़ार देख
आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं
महव-ए-हैरत हूँ कि दुनिया क्या से क्या हो जाएगी
और भी कर देता है दर्द में इज़ाफ़ा
तेरे ‘होते’ हुए गैरों का दिलासा देना
हमने तन्हाई को अपना बना रक्खा
राख के ढ़ेर ने शोलो को दबा रक्खा है
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
नहीं तेरा नशेमनं कसर्-ए-शुलतानी के
गुम्बद पर
तू शाहीन बसेर कर पहाडों की चट्टानो
में
ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें
जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
किसी की याद ने
जख्मों से भर दिया है सीना
अब हर एक सांस पर शक है के आखरी होगी
मैं रो रो के कहने लगा दर्द-ए-दिल,
वो मुंह फेर कर मुस्कुराने लगे
कौन रखेगा याद हमें इस दौर ए खुदगर्जी में,
हालत ऐसी है की ”लोगों” को खुदा याद नहीं
इश्क कातिल से भी मकबूल से हमदर्दी भी
यह बता किससे मोहब्बत की जजा मांगेगा
अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं
तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर
आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
अल्लाह के शेरो को आती नहीं रूबाही
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएँ
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं
कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को
खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए
जानते हो तुम भी फिर भी अजनान बनते हो
इस तरह हमें परेशान करते हो.
पूछते हो तुम्हे किया पसंद है
जवाब खुद हो फिर भी सवाल करते हो
मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा चाहिए
कि दाना खाक में मिलकर, गुले-गुलजार होता है
फ़िर्क़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं
क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी
वक़्त-ए-फ़ुर्सत है कहाँ काम अभीबाक़ी है
नूर-ए-तौहीद का त्माम अभी बाक़ी है
अपने मन में डूबकर पा जा सुराग जिंदगी
तू अगर मेरा नहीं बनता ना बन अपना तो बन
ख़ुदी वो ”बहर” है जिस का कोई किनारा नहीं
तू आबजू इसे समझा_अगर तो चारा नहीं
हम जब_निभाते है तो इस तरह ”निभाते” है
सांस लेना तो छोड़ सकते है पर दमन_यार नहीं
महीने-वस्ल के घड़ियों की ‘सूरत’ उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में
हर सूरत में छुपी है एक कहानी,
हर इंसान में बसी है तक़दीर।
सच्चा इश्क़ कीमत नहीं जानता,
ज़िंदगी ख़रीदता है सिर्फ़ नामों की।
आज आपने क्या सीखा
नाज़रीन मुझे उम्मीद है की आप सभी हज़रात को Allama Iqbal Shayari बेहद पसंद आया होगा. जिसमे 150 से भी ज्यादा शायरी नज़्म बताया गया है.
दिल को छू जाने वाली मशहूर शायर अल्लामा इकबाल के शेर शायरी आपके लिए पेश की है। दोस्तों उम्मीद करते हैं आपको Allama Iqbal Shayari बेहद पसंद आई होंगी.
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