अस्सलाम अलैकुम दोस्तों, NamazQuran.com में आप सब का Welcome है और इस पोस्ट में हम जानेंगे की फज़र,जोहर ,असर,मगरिब ईशा की Namaz ki Rakat के बारे में जानेंगे। अगर आप नमाज़ पढ़ते हैं और आपको नमाज़ की रकात के बारे में नहीं पता तो यह मुनासिब नहीं है आपको नमाज़ की Rakat को सीखना चाहिए।
हर एक मुसलमान पर नमाज फ़र्ज़ है और नमाज मोमिन का मेराज है। नमाज बुराई से रोकती है। जो इसे छोड़ेगा वह गुनहगार होगा नमाज किसी भी सूरत में माफ नहीं है। हर मुसलमान को पांच वक्त की नमाज रोजाना पढ़ना फर्ज है।नमाज हमारे प्यारे नबी मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम के आँखों की ठंढक है। क़यामत के दिन सबसे पहले नमाज का ही हिसाब होगा।
नमाज जब इतनी अहम है तो इसकी अदायगी भी बहुत एहतियात के साथ करनी चाहिए। ताकि अल्लाह के बारगाह में हमारी नमाज कुबूल होने लायक हो, उसका अज्र और सवाब आपको हासिल हो सके। अगर आप जानना चाहते हैं कि किस नमाज में कितनी रकात पढ़ी जाती है।
तो इस पोस्ट को पूरा पढ़ें। अगर आपने भी कभी सर्च किया है की नामा की रकत कितनी होती है और नमाज़ कैसे पढ़े तो यकीन मानिये आप सही ब्लॉग पढ़ रहे हैं।
5 वक़्तों के नमाज़ का नाम
- फजर (Fajr)
- ज़ोहर (Duhur)
- अस्र (Asr)
- मग़रिब (Maghrib)
- ईशा (Isha)
5 Waqt Namaz ki Rakat
Fajar ki Namaz ki Rakat कितनी होती है
- 2 रकात सुन्नत
- 2 रकात फ़र्ज़
- (कुल = 4 रकात)
Johar ki Namaz ki Rakat कितनी होती है
- 4 रकात सुन्नत
- 4 रकात फ़र्ज़
- 2 रकात सुन्नत
- 2 रकात नफिल
- (कुल = 12 रकात)
Asar ki Namaz ki Rakat कितनी होती है
- 4 रकात सुन्नत
- 4 रकात फ़र्ज़
- (कुल = 8 रकात)
Maghrib ki Namaz ki Rakat कितनी होती है
- 3 रकात फ़र्ज़
- 2 रकात सुन्नत
- 2 रकात नफिल
- (कुल = 7 रकात)
Isha ki Namaz ki Rakat कितनी होती है
- 4 रकात सुन्नत
- 4 रकात फ़र्ज़
- 2 रकात सुन्नत
- 2 रकात नफिल
- 3 रकात वित्र
- 2 रकात नफिल
- (कुल = 17 रकात)
Namaz ki Rakat ka Importance
हर नमाज़ में फ़र्ज़, सुन्नत, वाजिब, नफ्ल और कुछ मुअक्किदा व कुछ गैर मुअक्किदा होती हैं तो सबसे पहले हम इनका मतलब समझ लेते है की कौन सबसे ज्यादा जरुरी (Importance) है।
- फ़र्ज़: इस का पढ़ना ज़रूरी है और छोड़ना हराम है और इसके छोड़ने पर अज़ाब होगा। फ़र्ज़ नमाज़ें वो हैं जिन्हें हर हाल में अदा करना ज़रूरी है वो किसी भी वक़्त में माफ़ नहीं होतीं लेकिन अगर किसी शदीद मजबूरी में छूट जाये तो मजबूरी ख़त्म होने के फ़ौरन बाद पढ़ना ज़रूरी है। मर्दों को मस्जिद में जाकर इमाम के पीछे जमात के साथ अदा करनी होती है लेकिन अगर किसी मजबूरी की वजह से जमात में शामिल न हो सके तो अकेले पढ़ सकता है।
- वाजिब: जिसको जान बूझ कर अगर छोड़ा तो गुनाहगार होगा।
- नफ्ल: ( Nafl ) इसके पढने से सवाब होगा लेकिन न पढने से कुछ अज़ाब न होगा फिर भी जहाँ तक हो सके ज़रूर पढ़े।
- सुन्नते मुअक्किदा: जो फ़र्ज़ नमाज़ों की तरह ज़रूरी तो नहीं होती लेकिन बगैर किसी मजबूरी की वजह के सिर्फ़ सुस्ती की वजह से छोड़ना जाएज़ नहीं इसलिए इन्हें भी अदा करना ज़रूरी होता है, लेकिन वक़्त निकल जाने के बाद इनकी क़ज़ा नहीं पढनी होती है।
- सुन्नते गैर मुअक्किदा: जिसकी ज्यादा ताकीद न हो इसका हुक्म ये है कि करने वाला सवाब हासिल करेगा लेकिन न करने वाला गुनाहगार नहीं होगा।