Kabristan Ki Dua | कब्रिस्तान में दाखिल होने की दुआ

क्या आप Kabristan ki Dua पढ़ने और सिखने के लिए ख़ोज कर रहे है तो आप सही जगह आए हो।

क्युकी आज इस पोस्ट आपको कब्रिस्तान में दाखिल होने की दुआ सिखने को मिलने वाला है और इसके साथ इसके हदीस भी जानने को मिलेगा।

जब किसी का इन्तेकाल हो जाता है और उसकी Namaz e Janaza पढ़कर क़बिस्तान में जाने लगते है तो आप सोचते होंगे की काश kabristan Mein Dakhil Hone ki Dua याद कर लिया होता।

अगर आपको ये दुआ याद है तो आप इसके तर्जुमा भी जानने की कोशिश करना चाहिए।

कब्रिस्तान क्या है?

मुस्लिम धर्म में मृतक का दफ़न किया जाता है। इसलिए मुसलमानों के लिए कब्रिस्तान काफ़ी अहम होता है, यहां मुस्लिम मृतकों को दफ़नाया जाता है।

कब्रिस्तान को क़ब्रस्तान भी कहा जाता है। मुस्लिम कानून के अनुसार, कब्रिस्तान को पवित्र और शांत जगह होना चाहिए। यहां कब्रें कतारों में होती हैं।

मुसलमान अक्सर कब्रिस्तान जाकर क़ुरआन पढ़ते हैं और फातिहा करते हैं। कुछ कब्रिस्तान ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण होते हैं। मुस्लिम कब्रिस्तान की देखभाल की जाती है।

Kabristan Ki Dua

Qabristan ki Dua: रसूल (सलअल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) लोगों को ता’लीम फ़रमाते है कि जब वह क़ब्रिस्तान जाएँ तो कहें कि ऐ मोमिनों व मुसलमानों के घर वालों तुम पर सलाम हो और इन शा’ अल्लाह हम भी तुम से ज़रूर मिलने वाले हैं, हम अल्लाह से अपने और तुम्हारे लिए आफ़ियत माँगते हैं।
[Mishkaat Shareef, Pg:154]

kabristan Mein Dakhil Hone ki Dua

जब आप कब्रिस्तान में दाखिल होने लगते है तो आपको Kabristan mein Jaane ki Dua को साथ साथ पढ़ते जाना है क्युकी इस दुआ को पढने से बहुत ज्यादा सवाब भी मिलता है।

Kabristan Mein Dakhil Hone ki Dua In Arabic
Kabristan Mein Dakhil Hone ki Dua In Arabic
कब्रिस्तान में दाखिल होने की दुआ तर्जुमा के साथ
तुम पर सलाम ऐ कब्रोंवालों ! तुम हमसे पहले चले गए और हम तुम्हारे पीछे आने वाले हैं और अगर अल्लाह तआला ने चाहा तो हम जरूर तुम्हारे साथ मिलने वाले हैं। हम अपने और तुम्हारे लिए खुदा से राहत मांगते हैं। और अल्लाह हमें और तुम्हें बख़्शे, और रहमत करे अल्लाह हम पर और तुम पर।

कब्रिस्तान में दाखिल होने की दुआ पढ़ना क्यों जरूरी है?

बेशक हम सब अल्लाह तआला के बन्दे हैं, और हमें उसी की तरफ लौट कर वापस जाना है । हम हर रोज यह देखतें हैं कि कई नए बन्दे इस दुनिया में तशरीफ लाते हैं और कई बन्दे इस दुनिया से रुखसत हो जाते हैं।

अगर आप अपने परिवार , दोस्त या रिश्तेदारों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि हमारे कितने अपने लोग इस दुनिया-ए-फ़ानी से असल दुनिया की तरफ कूच कर चुके हैं।

जब किसी मोमिन का इंतकाल हो जाता है तो उसे गुस्ल दे कर कब्रिस्तान ले जाया जाता है । वहां उसके ज़नाजे की नमाज पढ़ाई जाती है और फिर उसको दफन कर दिया जाता है।

लेकिन हम में से कई ऐसे लोग भीं हैं जिन्हें न तो कब्रिस्तान में दाखिल होने की दुआ मालूम है और न ही ज़नाजे की नमाज की दुआ मालूम है।

वो लोग यह बखूबी जानते हैं कि मौत किसी को बता कर नहीं आने वाली। मौत कभी भी , कहीं भी और किसी को भी आ सकती है। फिर भी वो इन दुआओं को सीखने या जानने की कोशिश नहीं करते हैं।

नामालूम कब अपने घर में ही किसी की मौत हो जाए और वो उसके ज़नाजे की दुआ या कब्र में दाखिल होने की दुआ भी न पढ़ सके।

Kabristan Se Nikalne Ki Dua

जब आप मय्यत को दफ़न करने के बाद कब्रिस्तान से निकलने लगे तो Kabristan se Nikalne ki Dua पढ़ना चाहिए, कब्रिस्तान से निकलते वक़्त दुरूद शरीफ पढ़े फिर अस्सलाम अलैकुम कह कर बाहर निकल जाए।

इन्हें भी पढ़े:

Janaza Dekhne ki Dua

Dawat Khane ki Dua

मुझे उम्मीद है आपको kabristan Mein Dakhil Hone ki Dua के बारे जानकारी हो गया होगा की इसे पढ़ना क्यों जरुरी है और इसका मतलब क्या है. अगर अच्छा लगा होगा तो इसे social media में जरुर शेयर करे, और कुछ डाउटस है तो निचे कमेंट करे।

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