क्या Jumma ki Namaz ka Tarika सही से मालूम है? और उसके साथ नमाज़ की रकात, नियत, फज़ीलत और भी बहुत सारी जानकारी यहाँ पर मिलने वाला है।
namazquran वेबसाइट पर आपको सही जानकारी देने की हमेशा कोशिश किया जाता है जिसमे आज आपको जुम्मा की नमाज़ इमाम के पीछे कैसा पढना है, और इसकी नियत कैसे करना है और नियत का तरीका क्या है? इस आर्टिकल को शुरू से लास्ट तक जरुर पढ़े।
Jumma क्या है?
जुम्मा एक बहुत बड़ी फज़ीलत वाली दिन होता है जिसे छोटा ईद भी कहा जाता है। जो हफ्ते में एक दिन Friday के दिन जुम्मे की नमाज़ होता है।
ये नमाज़ हर बालिग मर्द पर पढना फ़र्ज़ है इसकी फजीलत जोहर से ज्यादा है इसका इंकार करने वाला काफ़िर है। हदीस शरीफ में है के जिसने तिन जुम्मे लगातार छोड़े उसने इस्लाम को पीठ के पीछे भेंक दिया- वह काफ़िर है।
जुम्मा न पढ़ने की सजा क्या है
عَنْ عَبْدَ اللهِ بْنَ عُمَرَ، وَأَبَا هُرَيْرَةَ أَنَّهُمَا سَمِعَا رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، يَقُولُ عَلَى أَعْوَادِ مِنْبَرِهِ: «لَيَنْتَهِيَنَّ أَقْوَامٌ عَنْ وَدْعِهِمُ الْجُمُعَاتِ، أَوْ لَيَخْتِمَنَّ اللهُ عَلَى قُلُوبِهِمْ، ثُمَّ لَيَكُونُنَّ مِنَ الْغَافِلِينَ». رواه مسلم في صحيحه (865).
Translation: हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर और हजरत अबू हुरैरह (R.Z.) ने रसूलुल्लाह (S.A.W) को फरमाते हुए सुना की आप मेंबर की सिरियों पर ये फरमा रहे थे: “जो लोग जुमा की नमाज़ छोर देते है वो लोग ख़बरदार हो जाए वरना अल्लाह ता’अला उन के दिलों पर मुहर लगा देंगे फिर वह लोग गफिलीन में से हो जायेंगे.” Muslim: Hadess No (865)
Jumma ki Namaz ka Time
जुम्मे की नमाज़ जोहर की नमाज़ के बदले में पढ़ी जाती है क्युकी जुम्मे की नमाज़ के baad जोहर की नमाज़ नहीं होता है।
Indian Standard Time के अनुसार जोहर की अज़ान 1 PM होती है और 1:15 से 1:30 PM के जमात खड़ी हो जाती है।
लेकिन जोहर की नमाज़ जुम्मे की नमाज़ से थोड़ा अलग होता है क्युकी Jumma ki Azan ka Time 12:30 PM पर होता है फिर इमाम हदीस की तकरीर करता है फिर खुतबा होता है. और 1:00PM से 1:30PM के बिच में Jumma ki Namaz का जमात खड़ी हो जाती है।
jumma ki namaz ka time हर जगह 15 से 20 minutes पहले या बाद में होता रहता है।
Jumma ki Namaz ki Rakat क्या है
प्यारे मोहम्मद मुस्तफा सल्लाह अलैहे वसल्लम के उम्मत जिस तरह पांचो वक़्त की नमाज़ का rakat होती है है उसी तरह ki Namaz ki Rakat होती है। आप सभी को rakat में बारे में जानना बहुत जरुरी है क्युकी अगर नमाज़ पढने में 2 के बजाए 3 rakat पढ़ लेते है तो आपकी नमाज़ नहीं होती। तो चलिए जान लेते है की जुम्मा की नमाज़ की rakat कितनी होती है।
Jumma ki Namaz Kitni Rakat Hoti Hai?
Jumma ki Namaz ki Rakat 14 होती है जिसमे 4 rakat सुन्नत, 2 rakat फ़र्ज़, 4 rakat सुन्नत, 2 rakat सुन्नत और आखिर में 2 rakat नफिल।
सुन्नत | फ़र्ज़ | सुन्नत | सुन्नत | नफिल |
4 rakat | 2 rakat | 4 rakat | 2 rakat | 2 rakat |
Note: अगर आप चाहे तो जैसे ही मस्जिद में दाखिल होते है तो 2 rakat मस्जिद में दाखिल होने की नफिल पढ़ सकते है। आप मस्जिद में देखते होंगे की बहुत सारे मुसलमान 4 rakat सुन्नत से पहले 2 rakat मस्जिद में दाखिल की नफिल पढ़ते है।
Jumma ki Namaz ka Tarika क्या है
आज की इस पोस्ट में सिर्फ आपको जुम्मा की 2 rakat फ़र्ज़ नमाज़ की तरीका बताया जा रहा है क्युकी अगर 14 rakat के बारे में बताएँगे को यह पोस्ट बहुत hi ज्यादा लम्बा हो जाएगा.
बाकि अगर आपको सुन्नत और नफिल का तरीका के बारे में जानना है ये पोस्ट पढ़े: नमाज़ पढ़ने का तरीका
जुम्मा की नमाज़ पढने के लिए सबसे पहले आपको वजू करना जरुरी है क्युकी बिना वजू किये नमाज़ नहीं होता है ध्यान रहे की वजू इत्मिनान और सही तरीके के साथ करे. इसलिए आपको सबसे पहले Wazu ka Tarika सीखना चाहिए.
कोशिश करे के वजू घर से ही बनाकर जाए इसका भी सवाब मिलता है फिर जब मस्जिद के जाने लगे तो मस्जिद मस्जिद में दाखिल होने की दुआ को जरुर पढ़े. फिर मस्जिद के अंदर दाखिल हो.
इसके baad अगर आप आपके पास ज्यादा समय है तो सबसे पहले 2 rakat मस्जिद में दाखिल होने की सुन्नत पढ़े. फिर 4 रकात जुम्मे की सुन्नत पढ़े फिर इमाम की खुतबे सुने.
खुतबा मुकम्मल होने के बाद इमाम के साथ फ़र्ज़ नमाज़ के लिए खड़े जाए
Jumma ki 2 Rakat Farz ka Tarika
आपको बता दे की जुम्मा फ़र्ज़ नमाज़ जमात के साथ पढ़ी जाती है अकेले या खुद इस नमाज़ को नहीं पढ़ सकते है.
नमाज़ की पहली रकात
तो चलिए जानते है 2 rakat फ़र्ज़ की नमाज़ इमाम के पीछे कैसे पढ़ा जाता है, सबसे पहले क़िबला रूह खड़े हो जाए फिर नियत करे।
Jumma ki Namaz ki Niyat का तरीका
हर नमाज़ की नियत अलग अलग होती है चाहते फ़र्ज़, सुन्नत, नफिल, उसी तरह 2 rakat जुम्मे की फ़र्ज़ नमाज़ की नियत भी बाकि नमाज़ की तरह अलग होता है।
नियत – ” नियत करता हूं मैं 2 रकात नमाज जुमे की फर्ज वास्ते अल्लाह ताआला के पीछे इस इमाम के मुह मेरा तरफ़ क़ाबा शरीफ के अल्लाहु अकबर ”
नियत करने के अपने दोनों हाथो के उंगुलियो को अपने कानो के लॉ तक लाना है फिर दोनों हाथो को नाफ के निचे बांध लेना है फिर सना पढ़ना है: “सुबहानका अल्लाहुम्मा व बिहम्दीका व तबारका इस्मुका व त’आला जद्दुका वाला इलाहा गैरुका”।
फिर दूसरा ताउज पढ़ें यानि के आउज़ बिल्लाहे मिन्नस सैतानिर्रजिम पढ़ें | इसके बाद आप चुप हो जाए इमाम की अल्हम्दो लिल्लाहे सुने फिर सूरह सुने।
सुरह पढने के बाद इमाम साहब अल्लाहू अकबर कहेंगे और रुकु में जाएंगे तो आपको भी रुकु में चले जाना है।
फिर इमाम बोलेगा समी अल्लाह हुलेमन हमीदा तो आप कहेंगे रब्बना लकल हम्द फिर अल्लाह हुअक्बर कहते हुए सजदे में चले जाए।
दो सजदे होगा और दोनों सजदे के दरमियान कम से कम आप तीन मर्तबा सुब्हान रब्बि यल आला कहें।
नमाज़ की दूसरी रकात
फिर आप अल्लाहु अकबर कहते हुए दूसरे रकात के लिए खड़े हो जाएँ दूसरे रकात में आपको चुप रहना है।
इमाम जब अल्हम्दो लिल्लाहे और सूरह पढ़ लेगा तो अल्लाह हुअक्बर कहते हुए रुकू में चले जाओ।
इसके बाद आप रुकू के लिए जाएँ और जैसा की हमने पहले भी बताया है रुके में कम से कम तीन मर्तबा सुब्हान रब्बिल अजीम कहें।
फिर इमाम बोलेगा समी अल्लाह हुलेमन हमीदा तो आप कहेंगे रब्बना लकल हम्द फिर अल्लाह हुअक्बर कहते हुए सजदे में चले जाए।
सजदे के दरमियान कम से कम आप तीन मर्तबा सुब्हान रब्बि यल आला कहें। फिर आप अल्लाहु अकबर कह कर अपने पंजो पर बैठ जाएँ
सबसे पहले एक मर्तबा अत्तहियातु लिल्लाहि पढ़ते हुए अपने शहादत के ऊँगली को उठायें।
अत्तहियात – अत्तहिय्यतो लिल्लाहि वस्सलवातो , वत्तैय्याबातो, अस्सलामो अलैका अइय्योहन्नबियो, वरहमतुल्लाहि व बराकातहु. अस्सलामो अलैना व आला ईबादिस्सालेहींन, अश्हदु अल्ला इलाह इल्ललाहु व अश्हदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुह व रसूलुहु.
Note – जब आप अश्हदु अल्ला इलाह इल्लल्लाहु पढें तो साथ में शहादत की उंगली को ऊपर सीधा सामने की तरफ इशारा करते हुए उठायें; यह जरूरी है।
उसके बाद एक मर्तबा दरूदे इब्राहिम पढ़ें।
उसके बाद एक मर्तबा दुआ ए मासुरा पढ़ें।
और फिर सलाम फेरें अस्सलामो अलैकुम वरहमतुल्लाह पहले दाएं जानिब मुंह फेरे फिर अस्सलामो अलैकुम वरहमतुल्लाह बाएं जानिब मुंह फेरें।
इस तरह से आपकी जुम्मे की 2 रकात फ़र्ज़ पूरी हो गयी।
इसी तरह बाकि की सुन्नत और नफिल की नमाज़ पढ़ा जाता है।
क्या बारिश में जुम्मा की नमाज़ छोड़ने की इज़ाज़त है?
अल्लाह सुभान ता’अला फरमाते है: मैंने दीन में किसी भी किस्म का सख्ती नहीं रखी है. (Surah hajj (22), ayat- 78)
Ibn Qudaamah r.h. फरमाते है की: बारिश की वजह से Jumma ki Namaz जमा’अत के साथ न पढने के लिए माफ़ी है, जिससे कीचल में कपडे गिले और गंदे हो जाए और दाग लग जाए।
Abdullah ibn Abbas r.a. ने मुआज़िन से बारिश के दिन में कहा था: जब तुम अज़ान में अश हदू अल्लाह इलाहा इल्लल्ला, अश हदू अन्ना मुहम्मदन रसूलुल्लाह, फिर उसके बाद हय्या अलस सलाह मत कहो बल्कि कहो की अपने घरो में नमाज़ अदा करो।
ये सुनकर लोगो ने ताज्जुब किआ, तो उन्होंने कहा, क्या आप इससे हैरान हो रहे हो? वो जो मुझसे बेहतर है Rasoolullah ﷺ ने ऐसा किया है. जुमा फ़र्ज़ है, लेकिन मै तुम्हे कीचड़ और फिसलन भरी जमीन से आने को मजबूर नहीं करना चाहता. Al Mughni (1/366)
औरत जुम्मा के दिन जुम्मा की नमाज़ पढ़े या जोहर की?
आजकर औरते फ़ितनो की वजह से घर में ही नमाज़ पढ़ती है इसीलिए जुम्मा के दिन अपने घरो पर जोहर की नमाज़ पढ़े. कोई कोई औरते अपने घरो में जुम्मा की नमाज़ पढ़ती है तो उनकी नमाज़ नहीं होती है और जोहर की नमाज़ बाकी रह जाता है. तो इसीलिए औरते को चाहिए की जुम्मा की नमाज़ को न पढ़कर जोहर की नमाज़ पढ़े।
5 गलतियाँ जो हम Jumma ki Namaz के दौरान करते हैं
जब हम जुम्मा की नमाज़ पढने की लिए जाते है तो नमाज़ के दौरान इल्म न होने की वजह से बहुत सारे गलतिया करते है। जिसमे में से 5 गलतियों के बारे में निचे बताया गया है:
ख़ुतबा के दौरान बात करना: पैगंबर अ.स. ने खुतबे के दौरान बात करने पर रोक लगा दी। खुतबा छोड़ कर किसी और तरफ मुतवज्जे होना सख्त गुनाह है। इसलिए हर किसी को चुप रहना चाहिए जब इमाम ख़ुतबा दे रहे हों।
जुमें की नमाज के लिए देर से आना: जुमा के दिन फ़रिश्ते हर मस्जिद के गेट पर खड़े हो जाते हैं और आने वालों के नाम लिखना शुरू कर देते हैं और जब खुतबा शुरू हो जाता है तो अपना रजिस्टर बंद करके खुतबा सुनने लगते हैं।
साफ कपड़े न पहनना: Prophet (PBUH) ने हुक्म दिया और हमें जुमा की नमाज के लिए सब से बेहतर और साफ कपड़े पहनने की सलाह दी।
जुमे की नमाज़ के दौरान काम करना: ए ईमान वालों जब तुम्हे जुमे के दिन नमाज़ के लिए अज़ान दी जाए तो अल्लाह के ज़िक्र की तरफ दौड़ पड़ो, और खरीद बिक्री छोड़ दिया करो अगर तुम समझ रखते हो तो ये तुम्हारे हक में ज्यादा बेहतर है।
जुम्मे के दिन गुस्ल न करना: जब भी आप लोग जुम्मे की नमाज़ के आए तो गुसल करके और पाक व साफ़ हो कर मस्जिद आए जैसे की हज़रत अब्दुल्ला इब्ने उमर से रिवायत है कि रसूल स.अ. ने फरमाया जब तुम में से कोई जुमा नमाज़ के लिए आये तो उसको चाहिए की गुस्ल कर ले।
जुम्मा वाजिब होने के लिए कितनी सर्ते है?
जुम्मा वाजिब होने के लिए 11 सर्ते है इनमे से अगर एक सर्त भी ना पाई गयी तो फ़र्ज़ अदा नहीं होगा फिर भी अगर पढ़ेगा तो हो जाएगा बलके मर्द आकिल बालिग के लिए जुम्मा पढ़ना अफज़ल है और औरतो के लिए जोहर कि नमाज़ अफज़ल है।
पहली सर्त: शहर में मोकिम होना।
दूसरी सर्त: सेहत यानि मरीज़ पर जुम्मा फ़र्ज़ नहीं- मरीज़ उसको कहते है जो मस्जिद तक जुम्मा की नमाज़ पढ़ने के लिए नहीं जा सकता हो मगर चला जाएगा तो मर्ज़ (बीमारी ) और बढ़ जाएगा या उसकी बीमारी देर में अच्छा होगा।
मस्ला: जो सख्स बीमार हो और जनता है के जुम्मा को जाएगा तो मर्ज़ और बढ़ जाएगा- और उसका कोई परेसान हाल ना होगा तो उस आदमी पर जुम्मा फ़र्ज़ नहीं।
तीसरी सर्त: आजाद होना गुलाम पर फ़र्ज़ नहीं और उसका आका मना कर सकता है।
मस्ला: नौकर और मजदुर को जुम्मा पढ़ने से नहीं रोक सकता अगर जमा मस्जिद दूर है तो जितना देर हर्ज़ हुआ उसकी मजदूरी में कम कर सकता है और मजदुर का मोताल्बा भी नहीं कर सकता।
चौथी सर्त: मर्द होना क्युकी औरत पर जुम्मा फ़र्ज़ नहीं।
पांचवी सर्त: बालिग होना यानि जो इन्सान जुम्मा पढ़ रहा हो वह आकिल बालिग हो।
छठी सर्त: आकिल होना ये दोनों सर्त खास जुम्मा के लिए नहीं बलके हर इबादत के वाजिब होने के लिए आकिल व बालिग होना सर्त है।
सातवी सर्त: अँधा आदमी पर जुम्मा फ़र्ज़ नहीं मगर उस अंधे पर फ़र्ज़ है जो शहर के तमाम गाली कुची में बिना तकलीफ के घूमता फिरता है और बिना पूछे और बिना मददगार के जिस मस्जिद में चाहे पहुँच जाए तो उस पर जुम्मा फ़र्ज़ है।
आठवी सर्त: चलने के कादिर होना यानि अपाहिज पर जुम्मा फ़र्ज़ नहीं लेकिन ऐसा अपाहिज जो मस्जिद तक पहुँच सकता है उस पर जुम्मा फ़र्ज़ है।
नववी सर्त: कैद में ना होना यानि कैदी पर जुम्मा फ़र्ज़ नहीं लेकिन अगर किसी दिन की वजह से कैद किया गया हो और मलदार है यानि जुम्मा अदा कर सकता है तो उस पर जुम्मा फ़र्ज़ है।
दसवी सर्त: खौफ ना होना अगर बादसाह या चोर वगैरा किसी जालिम का डर है तो उस पर जुम्मा फ़र्ज़ नहीं।
ग्यारवी सर्त: आंधी या पानी या दूसरी का ना होना यानि ये चीज़े अगर इतनी सख्स्त है के इनसे नुकसान का खौफ हो तो जुम्मा फ़र्ज़ नहीं।
Jumma Related Question (FAQs)
Jumma ki Namaz की जमात कायम करने के लिए इमाम के अलावा कम से कम कितने मर्द होने चाहिए?
जुम्मे की नमाज़ की जमात कायम करने के लिए कम से कम 3 मर्द का होना जरुरी है. मै मर्द लफ्ज़ लिया हूँ इसका मतलब ये है की मर्द न हो और सिर्फ 3 औरत हो तो जमात कायम नहीं किया जा सकता।
जुम्मा की नमाज़ और दूसरी नमाज़ में अंतर क्या है?
जुम्मा की नमाज़ जमा’अत के साथ पढ़ी जाती है और दूसरी नमाज़ बिना जमा’अत के साथ भी पढ़ी जाती है. और इमाम जुम्मे की नमाज़ से पहले खुतबा पढ़ते है और दूसरी नमाज़ में खुतबा नहीं होता।
खुतबा की अज़ान इमाम के सामने मस्जिद के अंदर पढ़ना सुन्नत या बाहर?
खुतबा की अज़ान इमाम के सामने मस्जिद के बाहर पढ़ना सुन्नत है क्युकी हुजुर अलेहे सलातो व सलाम और सहाबा कलाम के ज़माने में खुतबियत (खुतबा पढ़ने वाला ) के सामने मस्जिद के दरवाज़े ही पर हुआ करती थी.
जिन लोगो पर जुम्मा फ़र्ज़ नहीं है अगर वह लोग जुम्मा में शरीक हो जाए तो इनकी नमाज़ हो जाएगी या नहीं?
हो जाएगी यानि जोहर की नमाज़ उनके ज़िम्मा से साकित (हट) जाएगी.
Jumma ki Namaz Kya hai Farz ya Wajib
जुम्मा की नमाज़ फ़र्ज़ है और ये हर बालिग मर्द पर फ़र्ज़ है.
आज अपने क्या सीखा
आज की इस पोस्ट में आपने सीखा की Jumma ki Namaz का मुकम्मल तरीका क्या है और क्या क्या गलतिया नहीं करना चाहिए नमाज़ के दौरान ये आप ने जान लिया.
इसके साथ अपने Jumma ki Namaz ki Niyat और Jumma ki Namaz ki Rakat के बारे में भी जान लिया
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इसी तरह के इस्लामिक जानकारी के लिए NamazQuran वेबसाइट बने रहे अल्लाह हाफिज !!!