आज आप इस आर्टिकल को पढ़ रहे है तो Roza Rakhne ki Dua तलाश कर रहे है तो आपकी तलाश आज ख़त्म हो गया.
क्युकी आज की इस पोस्ट में Sehri ki Dua बताने जा रहा हूँ और इसके साथ बहुत सारे question का भी जानकारी देने जा रहा हूँ.
रमजान का महीना आ जाए और अपनी आंखों से रमजान का चांद देख ले या किसी सच्चे और ईमानदार आदमी की गवाही से चांद का निकलना साबित हो जाए और शाबान के 30 दिन गुजर जाए तो जान लेना चाहिए कि रमजान का महीना शुरु हो गया चाहे 30वीं तारीख को आसमान में गुबार और बदली ही क्यों ना हो और चांद नजर ना आए, लेकिन ऐसे में रमजान का महीना शुरू माना जाएगा।
रमजान की रोज़े की नियत और दुआ में क्या अंतर है?
Ramzan ke Roza Rakhne ki Dua और नियत मे ज्यादा नहीं बस थोड़ा सा ही फर्क है, जहां नियत मन मे कर ली जाती है कि “या अल्लाह मैंने आपके लिए रोजा रखा है” तो दुआ में हम अल्लाह से कहते हैं कि हमने तेरे लिए रोजा रखा है और हमे आप पर पूरा भरोसा है; यहां भरोसे का मतलब है रोजा रखने की ताकत, पत्थर सा मजबूत ईमान और वो सभी चीजें जिसमें हमे अल्लाह की बेहद मदद की जरूरत है।
Roza Rakhne ki Dua – रोजा रखने की दुआ
आपको बता दें कि Ramzan ke roze ki Dua और Ramzan ke roze ki niyat में बहुत सी बातें एक जैसी ही हैं; इसलिए हम नियत और दुआ को एक ही मान लेते हैं और नीयत मे ही दुआ जोड़ देते हैं।
Roza रखने की फ़ज़ीलत
हुजुर सल्लाह अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया की अगर किसी बन्दे को रमजान क्या है और रमजान की कितनी बड़ी फज़ीलत है मालूम हो जाए तो वह तमन्ना करेंगे की सालो साल रमजान ही रहे।
रमजान की रोज़े रखकर जो इन्सान सो जाता है तो वह इबादत में सुमार होते है वैसे तो हम आम दिनों में भी नफल रोजा रख सकते हैं लेकिन रमजान के रोज़े की बहुत ज्यादा फ़ज़ीलत है। रमजान मुस्लिम इस्लामिक कैलेंडर का 12 महीनों में से 9वां महीना है।
जो इन्सान रमजान की रोज़े रखकर चुप रहते है उनको तसदीह पढने का सवाब मिलता है। इस्लाम के पांच अरकानो मे रोजा भी एक रूक्न है। ये वो महिना है जिसमे अल्लाह तआला Quran sharif को इस जहाँ मे उतारा। इस महीने मे जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते है और जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिए जाते है।
शैतान इस महीने मे क़ैद कर लिया जाता है। लेकिन इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन हमारा नफ़स होता है। हमारे नफ़स की तरबियत भी रोज़े से ही होती है। इस महीने में नफ्ल काम करने पर अल्लाह फर्ज अदा करने का सवाब और फर्ज अदा करने पर सत्तर फर्जों का सबाब देता है।
इसी तरह रमजान की रोज़े की फज़ीलत पढ़ते पढ़ते आप धक जायेंगे क्युकी अल्लाह ता’अला की बहुत ज्यादा फज़ीलत है।
रोज़ा किस पर फ़र्ज़ है
माहे रमजान की रोज़े उन मर्दों और औरतो पर वाजिब और फ़र्ज़ है जिनमे ये 6 सर्ते पाए जाते है.
इस्लाह:- यानि रमजान की रोज़े मुसलमान पर फ़र्ज़ कुफारो मुस्राकिन पर नहीं।
बालिग:- यानि रमजान की रोज़ा बालिग इन्सान पर फ़र्ज़ है मतलब 12 साल से ऊपर की उम्र पर रोजा फर्ज है।
अक्ल:- यानि अक्ल वाले मुसलमान पर फ़र्ज़ है पागल मजनू पर नहीं।
कुदरत ताक़त:- अगर कोई इन्सान अपनी बीमारी या किसी भी वजह से कुदरत व ताक़त नहीं रखता तो उसपर रमजान फ़र्ज़ नहीं है।
इकामत:- यानि मुकीम इन्सान पर रोज़ा फ़र्ज़ है मुसाफिर सफ़र करने वाले इन्सान पर नहीं।
हैज़ व नफास:- हैज़ और निफ़ास वाली औरतो पर रोज़ा फ़र्ज़ नहीं है वो वह इन ममोलत से बाहर आ जाए तो जितना रोज़ा क़ज़ा हो गया है उसको अदा कर लेना चाहिए।
Sehri Me Kya Khaye
सेहरी की वक़्त आप जितना ज्यादा हो सकते सादा खाना खाए और ज्यादा पानी दूध पिए। अल्लाह ता’अला ने रमजान को सेहत बनाने की भी महीना है दिया है।
खजूर:- खजूर में आयरन के साथ कई पोषक तत्व पाएं जाते हैं। सेहरी में खजूर खाने से दिन भर कमजोरी का अहसास नहीं होता।
पानी:- सेहरी के टाइम कम से कम दो से तीन गिलास पानी जरूर पीएं। इसके अलावा शरीर को कमजोरी या मोटापे से बचाने के लिए इफ्तार से सेहरी के बीच भी खूब पानी पीना चाहिए ऐसा करने से आपके शरीर में पानी की कमी नहीं होगी।
दूध-दही:- सेहरी में कैल्शियम जरूर शामिल करना चाहिए। इसके लिए दूध या दही लेने से आपको पूरे दिन प्यास नहीं लगेगी।
फल-सब्जी:- रोजे में फल और सब्जी खाने से आपको भूख नहीं लगेगी क्योंकि ये धीरे-धीरे पचती हैं। साथ ही शरीर को भी तरलता मिलती है।
अगर आप देर में सोकर उठे तो क्या करें
जब आपकी नींद खुली तो आपको पता चला चला की सेहरी का वक़्त ख़त्म हो गया और अज़ान भी हो गया है, तब आपके पास एक ही उपाय बचता है, की आप बिना कुछ खाए पिए ही रोजा रख लें। जिससे आपका रोजा तो सही माना जाएगा, लेकिन आपको दिनभर ज्यादा कमजोरी महसूस होगी।
Roza Rakhne ki Dua Related Question (FAQs)
बिना सहरी का रोज़ रखना कैसा?
रात में सहरी के वक़्त सेहरी करने के लिए अगर आँख न खुले , तब भी रोज़ा रखना चाहिए सहरी न खाने की वजह से रोज़ा न रखना बड़ी कम हिम्मती की बात है । केवल सहरी न खाने की वजह से रोज़ा छोड़ना गुनाह है । अगर कभी आँख देर से खुली और यह ख़याल हुआ कि अभी रात बाकी है और कुछ खा पी लिया । फिर मालूम हुआ कि सुबह सादिक़ के बाद खाया पिया है , इस सूरत में रोज़ा न होगा मगर दिन भर रोज़ेदारों की तरह रहे न कुछ खाए न पिये।
क्या रोजे के लिये Sehri करना शर्त है?
रमजान के रोज़े के लिए सेहरी करना शर्त नहीं, सहरी के बिगैर भी रोज़ा हो सकता है मगर जान बूझ कर सेहरी न करना मुनासिब नहीं कि एक अजीम सुन्नत से महरूमी है और सहरी में खूब डट कर खाना ज़रूरी नहीं , चन्द खजूरें और पानी ही अगर ब निय्यते सहरी इस्ति’माल कर लें जब भी काफ़ी है।
खजूर से Sehri करना सुन्नत है?
रोजादार के लिए सेहरी करना सुन्नत है और अगर खजूर के साथ सेहरी करते है तो दूसरी सुन्नत पर अमल कर रहे है याद रहे अगर आपके पास खजूर नहीं है तो ये जरुरी नहीं है की बिना खजूर से सेहरी होगा नहीं क्युकी अल्लाह तआला के हबीब ने खजूर से सहरी करने की तरगीब दी है।
सय्यिदुना साइब बिन यज़ीद से मरवी है अल्लाह के प्यारे हबीब हबीबे लबीब ने इर्शाद फ़रमाया: :खजूर बेहतरीन Sehri है“ एक और मकाम पर इर्शाद फ़रमाया : ” खजूर मोमिन की अच्छी सेहरी है। “
रोज़ा रखने की नियत करना कितना जरुरी है?
माहे रमज़ान में रोजे रखने के लिए roza rakhne ki niyat बेहद जरूरी है। सेहरी खाने के लिए जागना और सेहरी खाना को भी रोजे की नीयत में शुमार किया जाता है। अगर नियत का इज़हार जुबान से किया जाए तो यह सबसे बेहतर तरीका है।
कुछ लोग मानते हैं कि हर रोजे की नीयत करना जरूरी नहीं है। कोई मुसलमान सभी रोजे की नियत एक साथ कर लें, क्या यह सही है ? इस सवाल के जवाब का मसला एवं मसाइल बहुत बड़ा है। बेहतर यह है कि आप हर रोजा रखने की दुआ करें।
अगर आप इतना भी नियत कर लेते हैं कि “आज मेरा रोजा है” या रात में नियत कर लेते हैं कि ” कल मेरा रोजा है”। इतना भी नियत कर लेने से भी अल्लाह ताला अपने बंदों का रोजा कबूल कर लेते हैं।
क्या सेहरी भी सुन्नते रसूल है?
सेहरी खाना हुजूर सललल्लाहो अलैहि वसल्लम की सुन्नत है। रोज़ा रखने के वक्त से पहले आखरी वक्त में खाई जाए। नबी करीम सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इसकी ताकीद फरमाई है जैसा कि हजरत अनस इन्ने मालिक रदियल्लाहो तआला अन्हुमा फरमाते है कि रसूले अकरम सल – लल्लाहो अलहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया सेहरी किया करो क्योंकि सेहरी में बरकत है।
क्या हम सेहरी खाए बगैर भी रोजा रख सकते हैं?
रोजा रखते समय सेहरी खाना सुन्नत और बरकत का प्रमाण माना जाता है, और सेहरी खाकर हमारे शरीर मे दिनभर रोजा रखने की क्षमता या ताकत बनी रहती है, इसलिये Sehri Ki Niyat करते समय सेहरी खाना जरूरी हो जाता है, लेकिन अगर आपको सेहरी खाने का मौका किसी भी कारण से नहीं मिल पाया, तब आप बिना सेहरी खाए भी रोजा रख सकते हैं आपका रोजा सही माना जाएगा।
रोजा किन किन वजहों से मकरूह हो सकता है?
बहुत छोटी छोटी चीज़े होती है जो रमजान से पहले आदत बन चुकी होती है लेकिन रमजान में भी वो चीज़े ख़त्म नहीं होती जिसके कारण रमजान की रोज़े मकरूह हो जाते है आइए जानते है।
- रोज़े की हालत में गान बजाना और नाचना।
- रोज़े की हालत में दांत निकलवाना।
- टूथपेस्ट या मंजन से दांतो को ब्रश करने पर रोज़ा मकरूह हो जाता है।
- थूक या बलगम को निगलने से भी मकरूह हो जाता है।
- गैर जरूरी चीजों को चबाना।
- पूरे बदन पर गीले कपड़े पहनने से याअपने पुरे कपडे भीगाने से।
- बदन के किसी भी हिस्से से खून निकलने से भी हो सकता है।
रोज़ा किन किन हालातों में नहीं टूटते हैं
कई बार रोज़े को लेकर कई तरह के बाते सामने आते रहते हैं जैसे की किन हालातों में रोजा टूट जाता है किन हालातों में नहीं टूटता है? आइए जानते हैं
- अगर कोई इंसान ये भूल जाता है कि वो रोजा है और ऐसे में गलती से कुछ खा लेता है, तो इस हालत में रोजा नहीं टूटता लेकिन इसके लिए भी एक शर्त है कि अगर खाने के बीच में ही उसको याद आ जाये की वो रोजा हैं तो खाना तुरंत बंद कर देना चाहिए।
- कई बार ऐसा होता है की नहाने के वक्त पानी मूंह या नाक में चला जाता है तो ऐसे मौके पर रोजा नहीं टूटता है, लेकिन अगर जानबूझ कर पानी पी लिया तो रोज़ा टूट जाता है।
- अपना थूक निगलने से भी रोज़ा टूटता नहीं है।
किन किन हालतो में रोजे में छूट मिलती है?
- बीमार के लिए रोज़े में छूट:- अगर कोई इंसान बीमार है, जिसको डॉक्टर ने भूखे रहने से मना किया है फिर वो कोई ऐसी दवा खा रहा है जिसे छोड़ने से उसकी बीमारी बढ़ सकती है तो वो रोजा छोड़ सकता है।
- सफर करते वक़्त:- अगर कोई लम्बा सफर कर रहा हो तो और अगर उसको रोजा रखने में परेशानी आ रही है तो वो रोजा छोड़ सकता है लेकिन छोड़े हुए रोजे का बदला उसको बाद में रोजा रख कर पूरा करना होगा।
- हैज़ व नफास:- प्रेग्नेंट औरतें या हामला औरतो या नई-नई मां बनने वाली औरते ,जो बच्चे को दूध पिलाती हैं वह भी रोजा छोड़ सकतीं हैं पर उन्हें भी बाद में रोज़ा रखना होगा है।
Sehri Ka Waqt कब होता है?
बहुत बड़े आलिम हज़रते अल्लामा मौलाना अली कारी फ़रमाते हैं की: ” बा’ज़ों के नज़दीक सहरी का वक्त आधी रात से शुरू हो जाता सहरी में ताख़ीर करना अफ़ज़ल है “।
हज़रते सय्यदुना या’ला बिन मुर्रह ‘ से रिवायत है कि प्यारे सरकार मदीने के ताजदार ने फ़रमाया: “तीन चीज़ों को अल्लाह महबूब रखता है“
- इफ्तार में जल्दी
- सहरी में ताख़ीर
- नमाज़ के क़ियाम में हाथ पर हाथ रखना
Roza Rakhne ki Dua Video
आज आपने क्या सीखा?
हर इंसान को चाहिए को वो साफ़ दिल से नियत करके अपना रोज़ा पूरा करे ,रमज़ान के महीने में नेक काम करे अल्लाह की इबादत करे ,सदका व खैरात करे ,किसी का दिल न दुखाये।
आज अपने Roza Rakhne ki Dua को सीखा यानि सेहरी की दुआ को सीखा उसके साथ रोज़े से related पूछे जाने वाले सवालो को भी सीखा।
निचे कमेंट में बताए की Roza Rakhne ki Dua आपको कैसे लगा साथ ही अपने दोस्तों को साथ भी शेयर करना मत भूलना खुदा हाफिज।